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समय के पहियों के बीच पीसी हुई यादें,
भूली बिसरी सी वो बचपन की बातें -
वो उड़ने की चाह, नभ को चीर बाहर निकलने की मुरादें
वो गिरना, वो उठना, वो बड़ी बड़ी बातें॥
मुडके जब भी देखा है समय की गीली रेत पर
निशान अब भी बांकी हैं, और हर एक निशान पर
लिखा है - कुछ धुंधला सा, उस दिन की वो बात,
वो शक्ल, वो दोस्त, वो खेल, वो कहानी॥
कभी कभी सोचता हूँ - क्या बस यूँ ही दबी पड़ी रह जाएँगी ये यादें,
चीथड़ों की पोटली सी मिटटी में सन जाएँगी क्या ये यादें?
1 Comments:
aah !! nice one..
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